
जल्दी सोने और जल्दी उठने का नियम जीवन साधना में रुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बनाना ही चाहिए। ब्रह्ममुहूर्त का समय अमृतोपम है। सवेरे जल्दी उठना उन्हीं के लिए संभव है, जो रात्रि को जल्दी सोते हैं। इस मार्ग में जो अड़चने हों उन्हें बुद्धिमतापूर्वक हल करना चाहिए, किंतु जल्दी सोने और जल्दी उठने की परंपरा तो अपने लिए ही नहीं पूरे परिवार के लिए बना ही लेनी चाहिए। रात्रि को सोते समय वैराग्य एवं संन्यास जैसी स्थिति बनानी चाहिए। बिस्तर पर जाते ही यह सोचना चाहिए कि निद्रा काल एक प्रकार की मृत्यु विश्राम है। आज का नाटक समाप्त कल दूसरा खेल खेलना है। परिवार ईश्वर का उद्यान है उसमें अपने को कत्र्तव्य निष्ठ माली की भूमिका निभानी थी। शरीर, मन ईश्वरीय प्रयोजनों को पूरा करने के लिए मिले जीवन रथ के दो पहिए हैं, इन्हें सही राह पर चलाना था। संन्यासी अपना सब कुछ ईश्वर को अर्पण करके परमार्थ प्रयोजन में लगता है। सोते समय साधक की वैसी ही मन:स्थिति होनी चाहिए। हल्के मन से शांति पूर्वक गहरी नींद में सो जाना चाहिए।