
हर दिन नया जन्म, हर रात नई मौत की मान्यता लेकर जीवनक्रम बनाकर चला जाए, तो वर्तमान स्तर से क्रमश: ऊंचे उठते चलना सरल पड़ेगा। मस्तिष्क और शरीर की हलचलें अंत:करण में जड़ जमाकर बैठने वाली आस्थाओं की प्रेरणा पर अवलंबित रहती हैं। आध्यात्मिक साधनाओं का उद्देश्य इस संस्थान को प्रभावित एवं परिष्कृत करना ही होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति में वह साधना बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है, जिसमें उठते ही नए जन्म की और सोते ही नई मृत्यु की मान्यता को जीवंत बनाया जाता है। प्रात: बिस्तर पर जब आंख खुलती है, तो कुछ समय आलस को दूर करके शय्या से नीचे उतरने में लग जाता है। प्रस्तुत उपासना के लिए यही सर्वोत्तम समय है। मुख से कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं पर यह मान्यता चित्र मस्तिष्क में अधिकाधिक स्पष्टता के साथ जमाना चाहिए कि आज का एक दिन एक पूरे जीवन की तरह है, इसका श्रेष्ठतम सदुपयोग किया जाना चाहिए। समय का एक भी क्षण न तो व्यर्थ गंवाया जाना चाहिए और न अनर्थ कार्यों में लगाना चाहिए। सोचा जाना चाहिए कि ईश्वर ने अन्य किसी जीवधारी को वे सुविधाएं नहीं दीं, जो मनुष्य को प्राप्त हैं।