योगपथ ,में कुण्डलिनी, ध्यान आदि के माध्यम से जो ऊर्जा
ऊपर की ओर ले जाते हैं तो वहीं धारा उल्ट होकर राधा बन जाती हैं
धारा शब्द का उल्टा राधा ही होता है।
अब वो धारा -राधा बनकर ऊर्जा चेतना मैं बदल जाती हैं जो अब मूलाधार स्वाधिष्ठान से ऊपर उठकर ऊर्ध्वगति करते हुए सहस्त्रार तक पहुंचती है
जहां कृष्ण विराजमान है
(परम तत्व) से मिल जाती हैं।
साधना
व्यक्ति में जो ऊर्जा सीमित है वह योग मार्ग के द्वारा निराकार,से साकार में राधा के ध्यान के द्वारा असीमित हो सकती हैं,
