भारतीय राजनीति में यदि किसी नाम ने विचार और संवेदना को एक साथ साधा, तो वह अटल बिहारी वाजपेयी थे। सत्ता उनके लिए साध्य नहीं, साधन थी। वे विपक्ष में भी उतने ही प्रभावी रहे जितने सत्ता में। संसद में उनके शब्द केवल भाषण नहीं, संवाद होते थे।
अटल जी का नेतृत्व सहमति, संवाद और संयम पर आधारित था। पोखरण परीक्षण हो या आर्थिक सुधार, उन्होंने राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखा। आज जब राजनीति में कटुता बढ़ रही है, अटल जी का व्यक्तित्व हमें मर्यादा की याद दिलाता है।
उनकी जयंती केवल स्मरण नहीं, आत्ममंथन का अवसर है—कि क्या हम उस राजनीति की ओर लौट सकते हैं, जिसमें विरोध भी शालीन होता था।
सतेन्द्र शिशौदिया
क्षेत्रीय अध्यक्ष भाजपा

